डी.एम. मिश्रा
उत्तर प्रदेश की समाजवादी सरकार के अमूमन हर पुरस्कार पर लोगों की उँगलियाँ उठ
रही हैं। चाहे वह ‘यश भारती’ का पुरस्कार/सम्मान हो चाहे ‘भाषा संस्थान’, ‘उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान’ या ‘उर्दू अकादमी’ या अन्य किसी विभाग का। इन
पुरस्कारों पर दलालों और चाटुकारों के माध्यम से वोट बैंक पुख़्ता करने का आरोप लग
रहा है। माना यह जा रहा है कि सरकारी पैसे को पानी की तरह बहाकर इस बहाने वोट खरीदा जा रहा है। यह भी प्रचार किया जा रहा है कि यदि ‘बहुजन समाज पार्टी’
या अन्य कोई पार्टी
सत्ता में आयी तो आगे से पुरस्कार बँटना तो बंद हो ही जायेगा। साथ ही ‘यशभारती’ वालों को जो 50 हजार रुपये महीने की पेंशन दी जा रही है वह भी चली
जायेगी। इससे समाजवादी सरकार ही फिर से सत्ता में आये इसके लिए दलाल अभी से सक्रिय
और लामबंद हो रहे हैं। साथ ही साथ प्रदेश सरकार सभी बड़े अखबारों को हर दिन तीन-चार
फुल पेज का विज्ञापन उनका मुंह बंद रखने के लिए दे रही है और उनसे मदद की उम्मीद कर रही है, सब जनता के पैसे से।
ऐसा कहा जाता है । संगीत, गायन, नृत्य, ललित
कला, फिल्म, साहित्य, शिक्षा, खेल, चिकित्सा, विज्ञान, समाज सेवा में विशिष्ट सेवा करने वालों को यह पुरस्कार/सम्मान
देय है। पर, अभी तक इसका कोई वास्तविक मानक तय नहीं। संभवतः पुरस्कार की कोई निर्णायक समिति
भी नहीं। मुख्यमंत्री या सपा के मुखिया जिसको चाह लें वह यह पुरस्कार और सम्मान
पाने का हकदार है। सर्वप्रथम 1994 में समाजवादी सरकार के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने इसकी
शुरुआत की थी।
1994 से 2012 के बीच में बसपा और
भाजपा की सरकारें रहीं तब यह पुरस्कार
बंद हो गया था। फिर समाजवादी पार्टी की सरकार अस्तित्व में आयी तो 2013 से मुख्यमंत्री अखिलेश
यादव ने इस पुरस्कार का पुनः शुभारम्भ किया। 2013 में पुरस्कार की राशि मात्र 5 लाख थी जो अब रुपये 11 लाख, साथ में 50 हजार मासिक पेन्शन का
रूप धारण कर चुकी है। फरवरी 2015 में 56 हस्तियों को ‘यश भारती’ दिया गया था जिसमें यादवों की संख्या 14 थी तो इस बार फरवरी 2016 में ‘यश भारती’ पाने वालों में
मुस्लिमों की संख्या सर्वोपरि 9 रही। सन् 2015 में भी ‘यश भारती’ विवादित रही। जगद्गुरू रामानंदाचार्य स्वामी
भद्राचार्य जैसे लोगों को भी सम्मानित किया गया था। जहां गायक रवीन्द्र जैन ने सपा
प्रमुख मुलायम सिंह यादव और मुख्य मंत्री अखिलेश की शान में कसीदे पढ़े थे, वहीं गायक अनूप जलोटा ने सम्पूर्ण पुरस्कार राशि 11 लाख लखनऊ की ‘‘हेल्प यू एजूकेशनल एन्ड
चैरिटेबिल’’ संस्था को दान कर दी थी।
21मार्च 2016 को 46 हस्तियों को सम्मानित
करते हुए सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने कहा-यश भारती से सम्मानित हस्तियाँ देश-विदेश
में यूपी का नाम रोशन कर रही हैं। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी कहा-कि ढूँढ़ -ढूँढ़ कर यूपी का नाम रोशन करने वाली
हस्तियों को सम्मानित किया जा रहा है। जिनमें हमारे कर्तव्यनिष्ठ प्रमुख सचिव श्री
आलोक रंजन की धर्मपत्नी श्री मती सुरभि रंजन भी शामिल हैं। उन्हें ‘‘यश भारती’’ गायन के लिए दिया जा रहा
है। तथाकथित 46 इन महाविभूतियों में कई नाम ऐसे हैं जिन्हें लोगों ने पहली बार सुना हो। कई
नाम ऐसे हैं जो कभी न कभी सुने तो गये हैं लेकिन ‘डिजर्विंग’ नहीं कहे जा सकते। अंकित तिवारी पार्श्वगायक (जिनका नाम
मैंने भी पहली ही बार सुना है) ने ‘यश भारती’ लेते हुए कहा कि जल्द ही आप लोगों को मेरे गाये हुए गाने
सुनने को मिलने लगेंगे। राजू श्रीवास्तव कमेडियन ने जब अपने सिर पर ‘यश भारती’ रखकर लोगों का मनोरंजन किया
तो हाल ठहाकों से गूंज उठा मानो वह कह रहा हो ‘यश भारती’ का स्तर यही है। महानायक अमिताभ
बच्चन की तो पूरी फैमिली को ही ‘यश भारती’ से नवाजा गया। जैसे
फिल्म इंडस्ट्री में यूपी का और कोई नायक-नायिका येाग्य हो ही न। ये तो अमिताभ
बच्चन का बड़प्पन कहिए कि उन्होंने पेंशन लेने से मना कर दिया यह कहते हुए कि इस
राशि को जरूरतमंदों को दान में दे दिया जाय। शायद उन्हें इसका आभास हो गया हो कि
कुछ गलत हो रहा है। मुशायरों की निजामत (संचालन) करने वाले एक शायर अनवर जलालपुरी को भी
साहित्य के लिए यह पुरस्कार दिया गया है।
आइये अब ‘यश भारती’ के कुछ ऐसे विवादों पर भी नज़र डालें जो सुर्खियों
में रहे। मुख्यमंत्री के हाथों शायर इमरान प्रतापगढ़ी को बतौर कवि साहित्य के लिए 21 मार्च को ‘यश भारती’ प्रदान किया गया। इसको
लेकर लोगों में काफी रोष रहा और जमकर विरोध हुआ। इमरान प्रतापगढ़ी को लोग शायर के रूप में उतना नहीं जानते जितना
बाहुबली अतीक अहमद से उनकी नजदीकियों को लेकर जानते हैं। जमीन कब्जा और
मारपीट के मामलों में अतीक अहमद के साथ उनका नाम कई बार जुड़ा है। हुआ यूँ कि
फेसबुक पर प्रतापगढ़ के ही रहने वाले कवि व साहित्यकार शीतला प्रसाद सुजान ने ‘यश भारती’ जैसे बड़े सम्मान के लिए इमरान की योग्यता और पात्रता
को संदिग्ध बताते हुए एक पोस्ट डाल दी। इतना ही नहीं उन पर चोरी की रचनाएँ पढ़ने का
भी आरोप मढ़ दिया। उस पर लोगों के तमाम ‘लाईक’ और ‘कमेन्ट ’ भी आने लगे। जिसे देखकर इमरान भड़क उठे और उन्हें तुरन्त
पोस्ट डिलीट करने का दबाव बनाते हुए अंजाम भुगतने की धमकी भी दे डाली। साहित्यकार
सुजान को जब लगा कि उनकी जान का ख़तरा बढ़ गया है तेा उन्होंने तुरन्त डी.एम. और एस.पी. को तहरीर देकर अपने जान-माल की सुरक्षा की
गुहार लगाई।
सबसे दिलचस्प मामला आई.पी.एस. अधिकारी अमिताभ ठाकुर का
आया। अमिताभ ठाकुर ने कहा जब एक आई.पी.एस. अधिकारी अपर्णा कुमार को यह पुरस्कार
पर्वतारोही के रूप में दिया जा सकता है, प्रमुख सचिव की पत्नी को गायन के नाम पर दिया जा
सकता है तो मुझे क्यों नहीं। उन्होंने
सीधे मुख्यमंत्री को इस आशय का पत्र लिख डाला। उन्होंने माँग की कि उनके काम को
देखते हुए सूबे की सरकार को उन्हें भी ‘यश भारती’ प्रदान करनी
चाहिए। अमिताभ ठाकुर ने लिखा कि यद्यपि वे एक राज्यकर्मी हैं लेकिन व्यक्तिगत स्तर
पर वह एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी जाने-पहचाने जाते हैं। विशेषकर
पारदर्शिता और उत्तरदायित्व के क्षेत्र में उनकी अच्छी खासी अहम भूमिका रहती है।
उन्होंने यह भी कहा कि यदि सरकार की ओर से सामाजिक क्षेत्र में काम करने वाले ऐसे
लोगों को सम्मानित किया जाता है जिनका योगदान मुझसे बहुत कम है, तो मुझे क्यों नहीं।
शुरू में यह सूची मात्र 22 लोगों की बताई गयी थी जो धीरे-
धीरे बढ़कर 46 तक पहुँच गयी। इसे देखकर मेरे मन में भी आशा जगी है कि यह महान पुरस्कार मुझे
भी मिल सकता है जो सम्भवतः भूलवश छूट गया हो। अतः निवेदन है कि मुझे भी ‘यश भारती’ प्रदान करके मेरा उत्साहवर्धन करें साथ ही ‘यश भारती’ का गौरव और बढ़ायें।
इसके अतिरिक्त छोटे-मोटे और भी कई विवाद इस सम्मान
से जुड़े हैं जो इस लेख में दे पाना सम्भव नहीं। हाँ, पाठकों को इतना बताना जरूरी
है कि इलाहाबाद की लखनऊ बेंच में एक याचिका अभी भी लंबित चल रही है, जिसमें हाईकोर्ट ने उत्तर
प्रदेश सरकार से सूबे के सर्वोच्च सम्मान ‘यश भारती’ के
मामले में जवाब-तलब किया है। कोर्ट ने पूछा है कि ये पुरस्कार किस वित्तीय मद से
दिये जा रहे हैं? साथ
ही सरकार से यह भी पूछा है कि पुरस्कार देने के लिए निर्धारित योग्यता और चयन
प्रक्रिया क्या है?
उर्दू अकादमी औरहिन्दी संस्थान के पुरस्कारों का और बुरा हाल है। इज़्ज़दार लोग ऐसे
पुरस्कारों को लेने से भी कतराते हैं। उर्दू के लेक्चरर और साहित्य
अकादमी, नई दिल्ली की पुरस्कार समिति के सदस्य
डॉ. अजय मालवीय ने इन पुरस्कारों पर सवालिया निशान लगाते हुए उर्दू अकादमी से मिले
अपने पुरस्कार को पिछले महीने लौटा दिया। तथाकथित दावेदार हमेशा इसी जुगाड़ में लगे
रहते हैं कि किससे सम्पर्क साधें कि वह भी ‘‘यश भारती’’ जैसा पुरस्कार हथिया कर बिना
कुछ किये धरे आजीवन पचास हजार की मोटी रकम पेंशन के रूप में लेते रहें।
लेखक कवि,
साहित्यकार और पत्रकार
हैं
संपर्क
मोबाइल नं0 9415074318 पर
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