03 September 2014

अँगिका मुस्लिम समाज की बदहाली

(यह आलेख 'सबलोग' मासिक पत्रिका के अगस्त 2014 अंक में प्रकाशित है।)  

नेपाल के बार्डर से सटा बिहार का कटिहार, किशनगँज, अररिया, पूणियाँ, सुपोल, मधेपुरा और सहरसा जिला सीमाँचल क्षेत्र के नाम से ज्यादा जाना जाता है। पूरे देश में सीमाँचल का यह क्षेत्र मुस्लिम आबादी के हिसाब से देश के बाकी हिस्सों से प्रतिशत में कहीं ज्यादा है। सीमाँचल के इस क्षेत्र में मुस्लिम जनसंख्या 30 से 35% है। यही कारण है कि गत लोकसभा चुनाव में बिहार में जहाँ 40 सीटों में 31 सीटें भाजपा गठबन्धन ने जीती, वहीं इस क्षेत्र की आठ की आठ सीटें भाजपा बुरी तरह हारी।

लेकिन सच यह भी है कि पूरे देश में मुसलमानों की सबसे खस्ता ओर बदहाल स्थिति इसी क्षेत्र में है। इस बदहाली में बहु–संख्यक समाज के कई वर्ग भी बराबर के भागीदार हैं। दरअसल यह पूरा क्षेत्र सिर्फ कृषि पर ही निर्भर है। लेकिन नेपाल से सटे और हिमालय की तराई में होने के कारण ऐसा कोई साल नहीं बीतता, जब यह क्षेत्र बाढ़ की विभिषका झेलने को मजबूर न रहा हो। हर साल गंगा, कोशी और महानन्दा जैसी नदियों में आयी बाढ़ से इस क्षेत्र के हजारों एकड़ फसल ही नहीं, बल्कि गाँव के गाँव बर्बाद होते रहते हैं। अगर कहीं पाँच–सात साल में 2008 जैसा प्रलय आ जाता है तो फसल और गाँव के साथ हजारों जीवन भी काल के गाल में समा जाते हैं।

लेकिन आजादी के बाद से आज तक काँग्रेस या अन्य क्षेत्रीय दलों के किसी सरकार ने इस क्षेत्र की बाढ़ की विभिषका से बचाने के लिये कभी कोई सार्थक प्रयास नहीं किया। राज्य की सरकारें इसे भारत और नेपाल के बीच का अन्तर्राष्ट्रीय मामला बताकर अपना दामन बचाती रही और केन्द्र सरकार बाढ़ के नाम पर इस क्षेत्र के लिये कुछ राशि आवँटित कर अपना पीठ ठोकती रही। सीमाँचल के लोग बाढ़ को अपने भाग्य के साथ जोड़कर इसको अपना नियति मानते रहे और इसी का दँश झेलते रहे।
 दूसरी ओर इस क्षेत्र में रोजगार के अवसर पैदा करने के लिये भी किसी सरकार ने कभी कोई प्रयास नहीं किया। न ही इस क्षेत्र में औद्योगिक विकास के लिये कोई कदम उठाया गया और ना ही माईक्रो या लघु उद्योग को बढ़ावा देने के लिये कोई प्रयास किया गया। परिणामत: गरीबी, भूखमरी और बेरोजगारी का इस क्षेत्र में ऐसा ताण्डव चला कि लाखों युवक पलायन कर दूसरे प्रदेशों में जाने को विवश हो गये। आज की तारीख में इस क्षेत्र के 50% से ज्यादा युवक दूसरे प्रदेशों में मजदूरी कर रहे हैं। बिहार से मजदूरों के पलायन की जो बात जोर–शोर से उठाई जाती है, उसमें दो मुख्य सच्चाई को गौण कर दिया जाता है। पहला, बिहार से पलायन कर बाहर मजदूरी करने वाले लोगों में सबसे ज्यादा संख्या सीमाँचल क्षेत्र के नौजवानों की होती है और दूसरा, बाहर जाकर मजदूरी करने वाले ये नौजवान दैनिक मजदूर नहीं, बल्कि सम्भ्रान्त परिवार के वे पढ़े–लिखे युवक हैं जो हालात से मजबूर होकर दिल्ली, पंजाब, हरियाणा या मुम्बई मजदूरी करने निकल पड़ते हैं।

और सीमाँचल क्षेत्र से पलायन कर बाहर मजदूरी के लिये जाने वाले युवकों में सबसे ज्यादा संख्या इस क्षेत्र के जिस समाज की है, उसे यहाँ अंगिका मुस्लिम समाज कहा जाता है। दरअसल, सीमाँचल क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा महाभारत काल में अँग क्षेत्र कहलता था और आज भी यहाँ जो भाषा गाँव देहातों में बोली जाती है, उसे अँगिका भाषा कहा जाता है जो वहाँ के मूल निवासीयों की भाषा है। आज सीमाँचल क्षेत्र के जो मुसलमान अँगिका भाषा बोलते है, ये यहाँ के मूल निवासीयों के वँशज है जिनके पूर्वजों ने कभी इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया था और अंगिका भाषी होने के कारण इन्हें अंगिका मुस्लिम कहा जाता है।

वैसे तो सीमाँचल क्षेत्र में अंगिका मुस्लिम के अलावा भी कुलहैया, सुरजा पुरी, भाटिया दरभंगिया मुस्लिम समाज की भी अलग–अलग क्षेत्रों में अच्छी आबादी है और इनके आलावा शिया, सैयद, पठान, अँसारी, मँसूरी, राइन, भाँट, सब्जीफरोश बिरादरीयाँ भी कुछ जगहों पर निवास करती है, लेकिन सबसे बड़ी आबादी होने के बावजूद आज अंगिका मुस्लिम समाज इस क्षेत्र का सबसे पिछड़ा समाज है और शैक्षणिक, आर्थिक राजनीतिक क्षेत्र में यह समाज दलितों और महादलितों से भी काफी पीछे है। आर्थिक तौर पर यह समाज इतना जर्जर है कि आज इस समाज के 50% से ज्यादा युवक दिल्ली, मुम्बई, पंजाब, हरियाणा, हिमांचल, बंगाल, राजस्थान यहाँ तक कि गोवा तक में मजदूरी या प्राइवेट दुकानों, फैक्ट्रियों में नौकरी कर रहे हैं। स्थानीय स्तर पर भी पूर्णियाँ, कटिहार जैसे शहरों मे और छोटे कस्बों में इस समाज के लोग साईकिल रिपेयरिंग, मोटर साईकिल रिपेयरिंग, सेल्फ–डायनेमो रिपेयरिंग, वेल्डिंग, पेन्टिंग एवं फल, सब्जी और छोटे किराना दुकानों तक ही सीमित हैं और बड़े कारोबार में इस समाज की उपस्थिति नगण्य है।
 शैक्षणिक स्तर पर भी यह समाज सीमाँचल के बाकी समाज से काफी पीछे है। अधिकाँश बच्चे मदरसा में थोड़ी तालीम हासिल कर आर्थिक तँगी के कारण कहीं न कहीं काम में लग जाते है। बहुत कम ही बच्चे स्कूल और कॉलेजों का मुँह देख पाते हैं। यही कारण है कि छ: जिलों में काफी बड़ी आबादी होने के बावजूद इस समाज में एक भी आईएएस, आईपीएस, डॉक्टर, इंजीनियर या कोई बड़ा गजेटेड अफसर नहीं है। मिला–जुला कर कुछ सौ लोग शिक्षक या किरानी की नौकरी में हैं।

कृषि–आधारित क्षेत्र होने के बावजूद अंगिका मुस्लिम समाज के लोगों की उपस्थिति इस क्षेत्र में भी बहुत अच्छी नहीं है। चूँकि अँग्रेजों ने इस पूरे क्षेत्र में बाहर से जमीनदारों को लाकर यहाँ के मूल निवासियों को उनका रैयत बना दिया था। इसलिये अँग्रेजों के जमाने में भी अंगिका मुस्लिम जमीनदारों के रैयत बने रहे और जमीनदारी-प्रथा समाप्त होने के बाद भी इनकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। ज्यादतर तो खेतिहर मजदूर ही बने रहे और जिन के पास पाँच–दस बीघा खेती की जमीन भी थी, कालान्तर में परिवार में बँटवारे के बाद वे भी उसी स्थिति को पहुँच गये। अस्सी के दशक के बाद एक समय ऐसा भी आया जब पलायन ही इस समाज के युवकों का एक मात्र सहारा बन कर रह गया।

राजनीतिक तौर पर इस समाज की हालत यह है कि आजादी के 67 साल गुजर जाने के बाद भी इस समाज से कोई व्यक्ति सांसद या विधायक नहीं बन पाया और न ही इस समाज में ऐसा कोई राजनीतिक नेतृत्व ही उभर पाया जो इस समाज की आवाज उठा सके। परिणाम स्वरूप साल–दर–साल इस समाज की स्थिति यह है कि यह समाज राजनीतिक दलों के लिये सिर्फ वोट बैंक बन कर रह गया है। हर चुनाव में राजनीतिक दलों के बीच इस समाज का वोट पाने के लिये पैसे लुटाने की होड़-सी मच जाती है। लेकिन टिकट बँटवारे के समय सभी पार्टियों द्वारा इस समाज के लोगों को सिर्फ इसलिये अनदेखा कर दिया जाता है कि इस समाज के लोग आर्थिक रूप से सम्पन्न नहीं हैं। और वर्तमान समय में चुनाव सिर्फ धन-बल वालों की जागीर बन कर रह गयी है।
 कुल मिला कर सीमाँचल में अंगिका मुस्लिम समाज आज एक ऐसा अति–पिछड़ा समाज है जिसके शैक्षणिक और आर्थिक विकास की बहुत सख्त जरूरत है लेकिन सरकार बीपीएल का 15 किलो गेहूँ और 10 किलो चावल देकर और इनके गाँवों में आँगनबाड़ी केन्द्र खोलकर आज भी इस समाज को उसी स्थान पर रखना चाहती है, जहाँ ये सिर्फ वोट बैंक ही बन कर रहें, बीपीएल का राशन पाकर सरकार का एहसानमन्द बने रहे और इतने जागरुक न हो जाएं कि यहाँ की राजनीति पर बर्चस्व जमाए कुछ नेताओं के अस्तित्व पर खतरा पैदा हो जाए, क्योंकि सीमाँचल का यह क्षेत्र प्रारम्भ से ही यहाँ के कुछ अन्य मुस्लिम समाज के जिन में कुलहैया मुस्लिम समाज और सुरजा पुरी मुस्लिम समाज प्रमुख हैं, उनके नेताओं की जागीर बन कर रह गयी है। आजादी के बाद से अब तक जहाँ कुलहैया मुस्लिम समाज से स्व. मो. ताहीर, स्व. जमीलु रेहमान, स्व. हलीम उद्दीन और श्री तसलीमुद्दीन आज भी अररिया से लोकसभा सदस्य हैं। बिहार विधानसभा में भी कुलहैया मुस्लिम समाज से प्रारम्भ से लेकर अब तक कोई दो दर्जन लोग विधायक और मन्त्री रह चुके है जिनमें श्री तसलीमुद्दीन, स्व. अजीमुद्दीन, स्व. मोईदुर्रहमान, स्व. मुजफ्फर हुसेन, सरफराज आलम, मन्जर आलम, सबा जफर आदि प्रमुख हैं। बिहार की राजनीति पर कुलहैया समाज के नेताओं का इतना गहरा असर है कि सीमाँचल का एक सम्पन्न समाज होने के बावजूद इन्हें एनेक्सर–1 का दर्जा मिल गया है और यह मुसलमानों के अति–पिछड़ी जाति में शामिल होकर आरक्षण का लाभ प्राप्त करने में सफल हो गये हैं।

सीमाँचल का दूसरा राजनीतिक तौर पर सम्पन्न मुस्लिम समाज सुरजापुरी मुस्लिम समाज है। किशनगँज से लोकसभा सांसद मौलाना असरारुल हक इसी समाज से हैं। आजादी के बाद से अब तक इस समाज से भी लगभग दो दर्जन लोग विधायक और मन्त्री रह चुके हैं जिनमें स्व. नईम चान्द, स्व. माँजन इंसान, स्व. मो. हुसेन आजाद, स्व. रफीक आलम, श्री महबूब आलम, हाजी अब्दुल सुभान, तौसीफ आलम, जलील मस्तान, जाहिपुरहमान, अख्तरुल ईमान, नौशाद आलम आदि प्रमुख है। आज भी बिहार विधानसभा में हाजी अब्दुल सुभान, तौसीफ आलम, नौशाद आलम आदि सीमाँचल क्षेत्र से विधायक है। शैक्षणिक रूप से भी यह समाज काफी आगे है और इस समाज के कई लोग सरकारी नौकरी में बड़े पदों पर है। पूर्णियाँ, कटिहार, अररिया, किशनगँज जैसे शहरों में इस समाज के सौ से भी ज्यादा डॉक्टर हैं जो सरकारी अस्पतालों में पदास्थापित हैं या अपना प्राईवेट क्लिनिक चला रहे हैं। राजनीतिक वर्चस्व के कारण इस समाज को भी आरक्षण का लाभ मिला हुआ है।

सीमाँचल क्षेत्र का एक और मुस्लिम समाज जिसे भाटिया या शेर शाहवादी मुस्लिम समाज कहा जाता है, मूल रूप से बंगला भाषी समाज है और आजादी के बाद पश्चिम बंगाल के मालदा और मुर्शिदाबाद जिला से पलायन कर इस क्षेत्र में आकर बसा है। लेकिन बहुत कम समय में इस समाज ने आर्थिक रूप से काफी तरक्की की है। और राजनीति में भी अपनी अलग हैसियत बनाने में सफलता पाई है। अब तक इस समाज से स्व. मुबारक हुसेन, अब्दुल शकूर और मन्सूर आलम बिहार विधानसभा में विधायक और मन्त्री रह चुके हैं और अपनी राजनीतिक हैसियत के बल पर अपने समाज को अति–पिछड़ी जाति में शामिल करा कर आरक्षण का लाभ दिलाने में सफल रहे हैं।
 पाँचवा मुस्लिम समाज जो सीमाँचल क्षेत्र का सबसे सम्पन्न मुस्लिम समाज कहलाता है, उसे दरभंगिया मुस्लिम समाज कहते हैं। सीमाँचल के मुसलमानों में यह समाज शिक्षा के क्षेत्र में सबसे आगे है। ये लोग दरअसल दरभंगा से आकर यहाँ बसे हैं और सीमाँचल के 20–22 गाँवों में ही इनकी आबादी है। लेकिन इस समाज में सबसे ज्यादा डॉक्टर, इंजीनियर, गजेटेड अफसर और सरकारी विभाग में नौकरी करने वाले लोग हैं। विदेशों में भी इस समाज के सैकड़ों युवक अच्छी नौकरी कर रहे हैं। राजनीतिक तौर पर भी इस समाज के लोगों ने सीमाँचल की राजनीति पर मजबूत पकड़ बना रखा है। स्व. मो. यासीन, स्व. अजीमुद्दीन और श्री आफाक आलम बिहार विधानसभा में इस समाज से प्रतिनिधित्व कर चुके हैं और श्री आफाक आलम वर्तमान में कसबा विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। इस समाज के भी अधिकाँश लोगों ने अपने को शेखरा दर्शाकर आरक्षण का लाभ लिया है।

सीमाँचल में अन्य मुस्लिम बिरादरी में शिया, सैयद, पठान, अंसारी, मँसूरी, राईन, भाँट, सब्जीफरोश आदि की भी छिट–फुट आबादी हैं। इनमें जहाँ शिया, सैयद, पठान आर्थिक और राजनीतिक तौर पर काफी मजबूत स्थिति में हैं, वहीं अंसारी, मन्सूरी और अन्य की गिनती आज भी समाज को दबे–कुचले तबक में होती है और इनकी स्थिति अंगिका मुस्लिम की स्थिति से भिन्न नहीं है। फिर भी राजनीति के क्षेत्र में इस समाज से मुन्ना मुस्ताक और जाकोर अनवर बैराग विधानसभा का प्रतिनिधित्व कर चुके है।

जहाँ तक सैयद बिरादरी का सवाल है, नगण्य जनसंख्या होने के बावजूद सीमाँचल की राजनीति पर इनका दबदबा बना हुआ है। अब तक इस समाज से सैयद शहाबुद्दीन और सैयद शाहनवाज हुसेन किशनगँज का लोकसभा में प्रतिनिधित्व कर चुके हैं और शाह तारिक अनवर कटिहार से पूर्व में कई बार सासंद रह चुके हैं और वर्तमान में भी कटिहार से लोकसभा सांसद है। बिहार विधानसभा में भी सैयद रुकनुद्दीन वायसी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। वर्तमान में सैयद महमूद अशरफ का भी सीमाँचल की राजनीति में गहरा असर है। और वह इस क्षेत्र में जदयू के एक कद्दावर नेता माने जाते हैं। शिया बिरादरी से भी सैयत गुलाम हुसेन कसबा विधानसभा क्षेत्र से पूर्व में प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।
हर लिहाज से कमजोर होने के कारण जहाँ समाज आरक्षण का सबसे बड़ा हकदार था, इससे वंचित रखा गया और सरकार बनाने, बचाने या गिराने में जिस समाज को राजनीतिक हैसियत थी, उसे आरक्षण का लाभ दिया गया। जहाँ तक अंगिका मुस्लिम की जाति शेख होने का सवाल है तो यहाँ जमीन के खतियान (केबाला) में कुलहैया, सुरजापुरी, भाटिया, दरभंगिया सभी मुसलमानों की जाति शेख ही दर्शाई जाती रही है। फिर भी अगर अवहेलना अंगिका मुस्लिम समाज की ही हो रही है तो इस का सीधा कारण यही है कि अति-पिछड़ा एवं कमजोर समाज होने के कारण न तो इस समाज में सशक्त नेतृत्व है, न ही कभी इस समाज ने अपने हक के लिए आवाज बुलन्द की है।

पिछले कुछ महीनों से अति–पिछड़ा समाज और अंगिका मुस्लिम समाज के कुछ बुद्धजीवी और समाजिक कार्यकर्ताओं ने आपस में मिल बैठकर अपने हक की लड़ाई के लिये एक नयी शुरुआत का फैसला किया है। इस सम्बन्ध में पूणियाँ के पूर्व लोक अभियोजक मो. युनुस, अति–पिछड़ा समाज के ही लालबाबू साहनी, दिलिप मेहता, प्रो. सुरेन्द्र शोषण, प्रो. निरंजन मण्डल, जनार्दन मिस्त्री, स्वरूप लाल ठाकुर एवं अंगिका मुस्लिम मण्डल, जनार्दन मिस्त्री, स्वरूप लाल ठाकुर एवं अंगिका मुस्लिम समाज के मो. जुबेर आलम, हाजी अब्दुल सत्तर, जावेद तुफेल, मुमताज दानिश, हैदर अली, कारी शमीम आदि ने एक बैठककर अपने हक की लड़ाई के लिये एक संयुक्त आन्दोलन शुरू करने का फैसला किया है। अति–पिछड़ा समाज के प्रमण्डलीय संयोजक श्री दिव्य प्रकाश का कहना है कि अंगिका मुस्लिम समाज सीमाँचल में अति–पिछड़े समाज का ही एक हिस्सा है, दोनों की समस्याएँ समान हैं, स्थिति समान हैं इसलिए हक की लड़ाई भी साथ मिल कर ही लड़ेंगे। अगर दोनों समाज ने मिलकर अपनी हक की लड़ाई शुरू कर दी तो निश्चित रूप से यह सीमाँचल की राजनीति में एक बड़े बदलाव को जन्म देगी। 
- एम. आलम ‘रहबर’

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