02 August 2017

कैसा हिंदुस्तान, मरता जहाँ किसान?



क्या छत्तीसगढ़, क्या मध्यप्रदेश, क्या झारखंड और क्या महाराष्ट्र, हर प्रदेश से किसानों की आत्महत्याएँ सुर्खियों में हैं। मध्यप्रदेश में तो पिछले दिनों प्रतिदिन एक किसान ले आत्महत्या की। छत्तीसगढ़ में भी यह सिलसिला शुरू हो गया। सबसे शर्मनाक बात यह है कि किसानों की खुदकशी पर जो सरकारी टिप्पणियाँ आती हैं, वो हृदय को चीर कर कर रख देती हैं। सत्ता और प्रशासन का निर्मम चेहरा बताने के लिए ये टिप्पणियाँ पर्याप्त हैं। कोई कहता है कि किसान ने मानसिक परेशानियों के चलते आत्महत्या की, कोई कहता है उसका कोई प्रेम-प्रसंग था। 
कृषि-प्रधान देश में आज किसान आत्महत्या करने पर विवश क्यों हैं, इस पर गंभीरता के साथ विचार करने की जरूरत है। किसान बचेगा तो खेत बचेंगे। खेत बचेंगे तो अनाज उपजेगा। अनाज उपजेगा तो मनुष्य समाज जिंदा रहेगा। इसलिए किसान को धरती का भगवान कहा जाता है लेकिन हमने किसान को आज इतना कमजोर और बेबस बना दिया है कि वह आत्महत्या के लिए बाध्य हो जाता है। और वह मरे क्यों न, जब सरकार और साहूकार दोनों उसकी जान लेने पर आमादा हो जाते हैं। किसान कर्ज लेता है और चुकाने के लायक नहीं रहता। उसकी फसल जब बर्बाद हो जाती है तो वह कर्ज पटाने के लिए पैसे कहाँ से लाएगा? लेकिन व्यवस्था निर्मम हो कर उसके पीछे पड़ जाती है। तब एक ही रास्ता बचता है पलायन । या तो गाँव छोड़ कर कहीं दूर भाग जाओ, या फिर अपनी जान ले लो। और अनेक टूटे-हारे किसान यही करते हैं। मानसिक रूप से वे इतने प्रताडि़त हो जाते हैं कि जान दे कर सारी झंझटों से मुक्त हो जाते हैं। तब  सरकारी प्रवक्ता कहता है वह मानसिक रूप से परेशान था। मगर क्यों था परेशान? क्योंकि उसके सिर पर कर्जे का बोझ था। प्रतिदिन के तकादे थे। अत्याचार था। छत्तीसगढ़ में किसान आत्महत्या कर रहे हैं। मैं छत्तीसगढ़ में रहता हूं। गाँवों को निकट से देखा है। यहाँ का किसान बड़ा खुशहाल ही रहता था। कभी आत्महत्या की सोचता भी नहीं था, लेकिन पिछले एक-दो दशकों से उसकी हालत खराब होती गई है। कर्ज के बोझ ने ही उसे आत्महत्या के लिए विवश किया है। और दूसरा कारण है ही नहीं। लेकिन निर्मम सत्ता और प्रशासन के भेजे में यह बात घुसती नहीं। वह अपने तरीके से चीजों को देखता है। अपनी छवि की उसे बड़ी चिंता है। एक दशक पहले जब महासमुंद में भूख से एक व्यक्ति मरा तो रातों रात उसके घर के भीतर घुस कर अनाज आदि रख दिया गया और कहा कि वह व्यक्ति भूख से नहीं, बीमारी से मरा। यही हालत आज है। किसान खुदकशी कर रहा है तो उसके प्रेम संबंध का खंगाला जाता है। पारिवारिक कलह को सामने ला कर रखने की कोशिश होती है। जबकि सच्चाई यही है कि किसान मरता है कर्जे के कारण । और जब किसान मर जाता है तो हमारे नेता आदर्शवादी संवाद बोलते नजर आते हैं कि आत्महत्या कोई समाधान नहीं। तो क्या किसान जिंदा रह कर अपने आप को नीलाम करके कर्ज चुकाता रहे? क्या वह जेल की हवा खाए
किसान आपदा फंड
किसानों को आत्महत्या से बचाने के लिए ठोस नीति बनाने की जरूरत है। सबसे बड़ी बात, यह देखना चाहिए कि क्या कोई किसान सचमुच परेशान है? उस पर कितना कर्ज है, उसकी आर्थिक पृष्ठभूमि कैसी है। उसके घर की माली हालत क्या है? प्रशासन के लोग गाँवों को सर्वे करते रहें। किसानों के बारे में एक डाटा तैयार करें। फसलों का आंकलन करते रहें। फसलों को समुचित मूल्य किसान को मिले। उसे बोनस मिले। वह बिचौलियों से बचे। सरकार सीधे उसकी अनाज खरीदे। और अगर बाढ़ आदि के कारण किसान की फसल नष्ट हुई है तो उसका पूरा कर्जा माफ होना चाहिए। सरकार को किसान आपदा फंड बनाना चाहिए। और अगर सरकार आथिज्ञर््क रूप से दिवालिये जैसी हो चुकी है, उसके पास अपनी अय्याशी के लिए पैसे हैं और लोकमंगल के लिए खजाना खाली-सा है तो वह किसान कर भी लगा सकती है। किसी ने किसी वस्तु के साथ दो प्रतिशत किसान -कर भी लागू कर सकती है। ऐसा करके जो पैसे जमा हों, उससे वो पर उस किसान का कर्जा माफ करे जो चुकाने की स्थिति में नहीं है। ऐसे कितने किसान हैं इसकी सूची आसानी से बन सकती है। सरकार पंचाययों के माध्यम से पता कर सकती है। इस सूची की प्रामाणिकता कै लिए दूसरे अधिकारी परीक्षण भी कर सकते हैं। इस देश में पंचायत स्तर तक भी भ्रष्टाचार व्याप्त है।  फर्जी सूची बना कर राशि हड़पने का केल निरंतर जारी रहता है। मनरेगा के मामले में हम सबने यह देखा ही है। अनेक निर्माण कार्यों में फर्जी मस्टररोल बना कर लाखों  रुपये हजम किये जाते रहे हैं। तो, यह देखा जाए कि किसानों के नाम पर कोई भ्रष्टाचार तो नहीं हो रहा है।  अगर ऐसा हुआ है तो कुछ नाम काटे जा सकते हैं, लेकिन जो सचमुच माफी के हकदार हैं, उन सबके कर्ज किसान आपदा फंड के जरिये माफ किये जाने चाहिए।  ऐसा करके सरकार कोई अहसान नहीं करेगी। यह उसका दायित्व है कि वह धरती के भगवान को बचाए। उसके साथ न्याय करे। 
लोकजागरण भी जरूरी
किसानों को आत्महत्या से बचाने के लिए उनके बीच जाकर एक सकारात्मक वातावरण बनाना जरूरी है। जब यवतमाल जिले में अनेक किसान आत्महत्या करने लगे थे तो हम कुछ साथी वहाँ जाकर अनेक गाँवों में घूम-घूम कर सभाएँ करते थे। किसानों से बातें करते थे। उन्हें समझाते थे कि जैसे भी विषम हालात हो, आत्महत्या न करें। मैं अपना एक गीत उन्हें गा कर सुनाया करता था, ''ओ धरती के भगवान , हमारे प्यारे बड़े किसान । अरे, तू मत ले अपनी जान, देख लज्जित है हिंदुस्तान''। युवा संत विवेकजी के साथ मैंने एक साथ अनेक गाँवों को दौरा किया। मेरे साथ कवि सतीश सक्सेना भी थे। हमने पाया कि हमारी सभाओं को व्यापक असर हुआ और बाद में आत्महत्याओं की घटनाएँ बेहद कम हो गईं।  किसान या किसी भी व्यक्ति को सहानुभूति के दो बोल चाहिए। उससे भी उसकी जख्मों पर मरहम लग सकता है। गाँवों में जा कर मैंने जो बातें रखीं उनमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि हम ये कैसा समाज रच रहे हैं कि हमारा कोई पड़ोसी आर्थिंक तंगी का शिकार हो कर दम तोड़ दे? पूरा गाँव, पूरा समाज आपस में चंदा करके क्या किसान की आर्थिक सहायता नहीं कर सकते? अनेक सामाजिक संस्थाएँ भी होती है, वे आपसे में धन एकत्र कर सकती हैं। जन प्रतिनिधियों के पास फंड होता है। उसमें से राशि निकाल कर कर्ज में डूबे किसानों का कर्जा माफ किया जा सकता है। अगर इच्छाशक्ति हो तो सरकार किसान का कर्ज माफ कर सकती है।  किसान मिलजुल कर खेती कर सकते हैं।  सहकारिता के आधार पर लघु बैंक चला सकते हैं।  साहूकारों के चंगुल में किसान न फँसे, इसकी देखरेख कर सकते हैं. ये ऐसे कुछ उपक्रम हैं जिसके माध्यम से किसानो के जीवन को बचाया और खुशहाल किया जा सकता है. यह अच्छी बात है कि इस दिशा में उत्तरप्रदेश के बाद महाराष्ट्र में भी जरूरमंद किसानों के कर्ज माफ ककरने की घोषणाएँ हुईं। अन्य राज्यों में भी यह सिलसिला प्रारंभ हुआ है। यह स्थायी नीति बने कि जब-जब कोई किसान कर्ज न पटाने की स्थिति से गुजरे तो उसका समुचित परीक्षण करके सरकार उसका कर्ज पटाए। अगर सरकारें करुणा के साथ काम करेंगी, वे साहूकारों की तरह निर्मम आचरण नहीं अपनाएंगी तो किसान आत्महत्या क्यों करेगा? वह भी जिंदा रहना चाहता है। हालात उसे मरने पर विवश करते हैं।   
   सबलोग अगस्त 2017 में प्रकाशित |


                                                                                      गिरीश पंकज 
                             लेखक प्रतिष्ठित रचनाकार और सदभावना दर्पण के सम्पादक हैं |
                                                                               मोबाइल - 09425212720
                                                                        ईमेल - girishpankaj1@gmail.com


No comments:

Post a Comment