19 May 2015

सबलोग मई 2015


समाजवाद के पुरोध के नाम पाती

              मनोज कुमार झा

परम आदरणीय जवाहरलालजी  
सादर प्रणाम!
इससे पहले कि आप चैंके मैं आपसे कुछ बातें बिना लाग लपेट के कह देना चाहता हूँ। मेरा परिचय आपके लिए कुछ खास महत्त्व नहीं रखता है और रखना भी नहीं चाहिए। मैं आपकी मृत्यु के ढाई तीन वर्ष पश्चात उस
धरती पर आया था जिसकी जमीन में आपका अस्थि अवशेष समाहित हो चुका था। आप चल बसे थे लेकिन आपकी मौजूदगी मेरी पीढ़ी के इर्दगिर्द हमेशा बनी रही। बचपन से ही सुनता रहा था। नेहरू ने ये किया। नेहरू
ने वो किया। ये बाँध, ये बराज नेहरू ने बनवाया था। इस काॅलेज का उद्घाटन नेहरू ने किया था। ये नीति नेहरू ने बनायी। इतने विशाल और विविधता से भरे मुल्क में उदार लोकतन्त्रा और हर व्यक्ति को वोट का अधिकार
देने में नेहरू की महत्ती भूमिका रही। आदि आदि। हमारे गाँव में एक मिलन मन्दिर हुआ करता था ;जिसके मैंने सिपर्फ भग्नावशेष देखे थेद्ध। लोग बताते थे कि आपके द्वारा शुरू किये गये ‘सामुदायिक विकास कार्यक्रम’ के तहत यह बना था। मेरे दादा बताते थे कि नाम में मन्दिर शब्द होने के बावजूद किसी के लिए
‘प्रवेश निषेध’ का प्रावधान नहीं था घोषित या अघोषित... न जाति पर, न वर्ग पर और
ना ही पूजा पति की भिन्नता पर। शायद  आपके होने के कारण उस दौर में मन्दिर को स्जिद से और मस्जिद को मन्दिर से खतरा  नहीं था और घर के बड़े बुजुर्ग बताते थे कि आप दंगाइयों के बीच घुस कर खुद लात घूसा
चलाने लगते थे। कमाल है भाई। आप ये सब कर गये और पीछे छोड़ गये ये कहानियाँ  जिनको सुनकर और पढ़कर मेरी पूरी पीढ़ी को एक अहसासे-कमतरी होता रहा, मैंने और मेरे कई साथियों ने हजारो दपफे यह सोचा कि काश आपके रहते ही हम भी पृथ्वी पर आ गये होते तो ‘इन्दर मल्होत्राजी’ की तरह हम भी कहते कि, ‘हिन्दुस्तान दुनिया की सबसे खास जगह है क्योंकि यहाँ नेहरू रहते थे। आजादी की हीरक जयन्ती पर पैदा हुए बच्चे भले कितने ही बरस जियें लेकिन वो नेहरू की तरह के जिन्दादिल और उदार शख्स को कभी नहीं देख पाएँगे।’  खैर! इस खत को लिखने का आशय यह नहीं था कि आपकी तारीपफ में काढ़े जाएँ।

 वैसे भी कसीदों ने आप में हमेशा झल्लाहट ही बढ़ायी है। सच कहूँ तो यह चिट्ठी मैं दस-बारह वर्ष की जब मेरी उम्र थी तब से ही लिखना चाह रहा था, तब रूक गया क्योंकि लगा कि लोग कहेंगे कि बौरा गया है। स्वर्गीय हो गये लोगों को लिखने की बात कर रहा है। पिफर बढ़ती उम्र के साथ यह जान पाया कि मुझसे पूर्व कई लोग यह
गुस्ताखी कर चुके हैं। पिफर दुनियादारी  में उलझ कर भूल ही गया लेकिन बीती 16 मई
को जब आम चुनाव के नतीजे आये और एक नयी सरकार कुछ अलहदा सरोकारों के साथ आयी तो ऐसा प्रचारित किया गया मानो चुनाव काँग्रेस पार्टी नहीं बल्कि आप और आपकी प्रतिबताएँ हार गयी हों। हालाँकि सच तो यह है कि काँग्रेस इसलिए हारी कि आप और आपके द्वारा प्रतिपादित मूल्यों को स्वयं काँग्रेस
वालों ने ही तिलांजलि दे दी थी। और पिफर आपके विचारों और मूल्यों को नेस्तनाबूद करने का एक ऐसा राष्ट्रीय अभियान चला कि जिसकी कोई हद ही नहीं थी। यह एक ऐसा दौर था जब मैंने ठान लिया कि चाहे आपकी चिर निद्रा में थोड़ी खलल पड़े लेकिन आपको हालात से रूबरू कराना बेहद जरूरी है। हमारे
शहर की एक प्रतिष्ठित साप्ताहिक पत्रिका ;अँग्रेजीद्ध ने तो बीते नवम्बर के अपने एक अंक का शीर्षक ही रख दिया ‘क्या नेहरू मोदी से बच सकते हैं?’। हम सब पहले तो सन्न रह गये परन्तु शीर्षक में ‘प्रश्नवाचक
चिन्ह’ देखकर राहत महसूस हुआ कि अभी सब खत्म नहीं हुआ है लेकिन कई सवाल पिफर भी बचे रहे। इस चिट्ठी के माध्यम से मैं मौजूदा सरकार और समाज के एक वर्ग में आप और आपके विचारों के प्रति वैमनस्य
;घृणाद्ध को समझने की चेष्टा करूँगा। शायद  आप भी जान पायें कि ‘कितना बदल गया आपका हिन्दुस्तान’।
अब वैज्ञानिक सोच को ही लीजिये। आपने स्वयं कई अवसरों पर यह स्वीकार  किया कि जीवन और यथार्थ को देखने और समझने के लिए आपके आशावाद की पृष्ठभूमि में एक स्पष्ट वैज्ञानिक दृष्टिकोण था। सम्भवतः
इसी वैज्ञानिक दृष्टिकोण और धर्म के साथ कुरीतियों और बासी रिवाजों के मद्देनजर अपने आपको ‘संशयवादी’ घोषित किया। आपके लिए लौकिक महत्त्वपूर्ण था ना कि अलौकिक  जिसकी सबसे पहली शर्त है कि बगैर संशय और वैज्ञानिक आलोचना के व्यक्ति स्वयं को  समर्पित करे। दूसरी तरपफ इन दिनों आपके
पद पर सुशोभित व्यक्ति महाभारत के कर्ण के माध्यम से जेनेटिक विज्ञान और भगवान् गणेश के माध्यम से प्लास्टिक सर्जरी के ज्ञान को दुनिया को भारत की देन बताते हैं। हमारे मौजूदा प्रधानमन्त्राी मंगल यान के प्रक्षेपण से पूर्व नवरात्रि की महिमा बताना उतना ही जरुरी समझते हैं। अब आप ही सोचें अगर आपके
वैज्ञानिक विचार और मूल्य अगर समाज में प्रभावी रहे तो हमारे प्रधानमन्त्राी यह कैसे घोषित कर पाएँगे कि स्टेम सेल रिसर्च प्राचीन भारत में एक समृविधा थी। हम किसे समझाएँ कि तर्क और वैज्ञानिक सोच के
आधार पर आपने हिन्दुस्तान की निरन्तरता को समझते हुए आपने एक प्रगतिशील और उदार हिन्दुस्तान की तामीर की थी। सत्तासीन मौजूदा विचारधारा को अपने प्रतिद्वन्दी राजनीतिक दलों से नहीं आप से भय है और शायद यह कारण है कि आज की पीढ़ी को बताया और समझाया जा रहा है कि अगर आप न होते
भारत प्राचीन गौरव को कभी न खोता और स्टेम सेल, प्लास्टिक सर्जरी और जेनेटिक विज्ञान आदि विषयों का विश्व को हमारा एकान्तिक योगदान होता। हमारी जयजयकार हो रही होती। उनके हिसाब से आप तारीखी
गुनाहगार हैं, लेकिन कोई उन्हें कैसे बताए कि आप से ज्यादा शायद ही किसी ने भारत की समृविरासत को विश्व पफलक पर रखा हो। हम उन्हें कैसे समझाएँ कि सार्वजनिक जीवन में तर्कहीन आस्था ने मुल्क में
अन्तर-समुदाय सम्बन्धों को किस प्रकार लगातार कमजोर किया था यह आपकी चिन्ता का विषय रहा।
हाँ। अब थोड़ी चर्चा आपके धर्मनिरपेक्षता के आदर्शों की।
आपके लिए भले ही धर्मनिरपेक्षता न्याय, समानता और लोकतन्त्रा के लिए आपकी प्रतिब(ता की एक महत्त्वपूर्ण  कड़ी थी लेकिन आज के शासकगण और उनकी विचारधारा के झंडाबरदार मानते हैं
भारत जैसा महान और असीम सम्भावनाओं वाला देश सिपर्फ इसी कारण ‘सोने की चिडि़या’ के स्तर से पदच्युत हो गया कि आपने इसे धर्मनिरपेक्ष देश बना दिया। आपके पश्चात यह आपकी विचारधारा वालों को धर्मनिरपेक्षता से पहले ‘छद्म’ उपसर्ग लगाकर नवाजने लगे’। कमाल तो यह है जवाहरलालजी कि आपके
मूर्तिभंजक इस बात को नहीं मान पाते हैं कि आपकी धर्मनिरपेक्षता की समझ पश्चिमी देशों से आयातित नहीं थी। उनका मानना है जब पढ़ाई पूरी कर इंग्लैंड से लौटने के दौरान आप अपने साजो सामान के साथ धर्मनिरपेक्षता भी ले आये। न मानने को कटिब लोगों को हम यह कैसे बताएँ कि आपकी धर्मनिरपेक्षता की जड़ें हिन्दुस्तान के धार्मिक सन्दर्भ, राजनीतिक चिन्तन और संस्कृतिक अवधारणाओं के मध्य सिंचित हुई थीं। आपके लिए, धर्मनिरपेक्षता बस एक राजनीतिक दर्शन नहीं था, बल्कि एक व्यापक और मानक संकल्पना थी जिसमें  सभी धर्मों, मान्यताओं और समुदायों को पूरी स्वतन्त्राता के साथ जिन्दगी जीने और राष्ट्रनिर्माण
में हिस्सेदारी की आजादी थी। प्रिय जवाहरलालजी, तमाम प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष विघ्न बाधाओं के बावजूद सभी के  लिए समान अवसर के लिए राज्य की प्रतिबता तय करना आसान नहीं था तब जबकि पड़ोस
में पाकिस्तान बना हो और आपके कुछ सहयोगियों द्वारा हिन्दुस्तान में हवा गर्म करके ‘हिन्दू पाकिस्तान’ बनाने का दबाव रहा हो। स्वाधीनता संग्राम के केन्द्रीय विमर्श में उदार लोकतान्त्रिाक प्रावधानों और धर्मनिरपेक्ष सिधान्तो  को लाने में आपको अपने कई सहयोगियों से जद्दोजहद करनी पड़ी। लोग आपको
धर्मविरोधी, नास्तिक और न जाने क्या क्या उपमा देते रहे। आपने न सिपर्फ अपने साथियों बल्कि समग्र हिन्दुस्तानियों को यह बताया कि धर्म के बहुलवादी स्वरूप ने हिन्दुस्तान की सभ्यता को लगातार परिमार्जित किया था लेकिन किसी एक समुदाय की पूजा पति और धर्म के आधार पर निर्मित राज्य हिन्दुस्तान
की विविधता के मौलिक स्वरूप और चिन्तन को नष्ट कर देगा। आपको शायद याद हो कि 5 नवम्बर 1946 को मुंगेर में हुए दंगो के पश्चात आपने कहा थाः 12 वर्ष पूर्व भी मैं यहाँ आया था जब
एक भीषण भूकम्प आपके पूरे जिले को तबाह कर गया था और आज मैं पुनः यहाँ एक तबाही के मंजर के समक्ष खड़ा हूँ। और यह तबाही प्रकृति ने नहीं बल्कि इनसान ने दूसरे इन्सान के खिलापफ की है। जब प्रकृति तबाही
लाती है तो लोग एक दूसरे की मदद के लिए  आगे आते हैं लेकिन इस तबाही में तो एक भाई दूसरे भाई का गला काटने को तत्पर है। यह कौन सा तर्क है, यह कौन सा चिन्तन है कि आप पूर्वी बंगाल में हुए साम्प्रदायिक
हिंसा का बदला अपने बिहार के पड़ोसी मुसलमान भाइयों से लेना चाहते हैं। क्या यह है आपकी संस्कृति और सभ्यता जिस पर आपको गर्व है? मैं जनता हूँ इसमें सबसे ज्यादा नुकसान सरल और सहज आम लोगों का
होगा, किसानों का होगा और भड़काने वाले लोग दूर खड़े होकर इस तबाही के लिए ताली बजा रहे होंगे। आप सबों को अपने घृणित और अराजक व्यव्हार पर शर्म आनी चाहिए। (Selected Works, Volume-1, p. 61)
जवाहरलालजी ! उस दौर में आप लगातार लोगों को एकजुट होकर इस वहशीपने से लड़ने को कहते रहे। और आप कापफी हद तक सपफल भी रहे। आप कहते रहे कि साम्प्रदायिक उन्माद ने भारत के दिल को कापफी हद तक तोड़ दिया है लेकिन सनातनी एका और साझी तहजीब की डोर पूरी तरह नहीं टूटी है। बापू की हत्या से ठीक दो दिन पहले आपने श्यामा प्रसाद मुखर्जी को पत्र लिखकर हिन्दू महासभा की नापाक गतिविधियों के बारे में अपनी चिन्ताओं को साझा करने के साथ साथ आरएसएस की भड़काऊ साम्प्रदायिक तेवर के कारण भारत के विभिन्न हिस्सों में हो रहे दंगों का भी जिक्र किया। यह वह दौर था जिसमें आपके ही कुछ साथी मुसलमानों से हिन्दुस्तान के प्रति वपफादारी का सबूत माँगते थे। हर उस ‘वपफादारी’ का सबूत माँगने वालों के कारण आपका दिल रोया जरूर होगा लेकिन आपने हार नहीं मानी और न ही अपनी संवेदनाओं और प्रतिबताओं के
साथ समझौता किया बल्कि कई कदम आगे जाकर आपने अपने सरोकारों को एक आन्दोलन  का भी स्वरूप दिया। कई वैसे लोग जो आपके दल में नहीं थे, वे भी आपके साथ आये। क्योंकि उदार लोकतन्त्रा, समानता और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों पर आधारित हिन्दुस्तान के लिए एक व्यापक सहमति बन चुकी थी और कम से
कम तब की तारीख शायद उलटे कदम चलने की इजाजत नहीं देती थी। खैर। जवाहरलालजी। कितनी बातें कहीं जाए आपसे और वह भी एक चिट्ठी में। पूरी दुनिया और तमाम समावेशी और एकान्तिक विचारों का गम्भीरता से अध्ययन करने के पश्चात आपको हिन्दुस्तान के लिए लोकतान्त्रिक समाजवाद से बेहतर कुछ नहीं लगा। शीर्ष नेताओं के साथ आपके संवाद से वाकिपफ हूँ और शायद इसलिए यह समझता हूँ कि आपके लिए लोकतान्त्रिक समाजवाद की लड़ाई धर्मनिरेपक्षता की लड़ाई जितनी ही दुरूह थी। आपको याद हो उद्योगपतियों के कुछ बड़े समूहों ने तो आपके समाजवादी तेवर के कारण काँग्रेस को चन्दा बन्द कर देने तक की धमकी
दे दी थी। लेकिन बिना भय के आप काँग्रेस को यह मनवाने में सपफल हुए कि लोकतान्त्रिक समाजवाद सिपर्फ राज्य का सरोकार ना होकर हर हिन्दुस्तानी की जीवन पति का हिस्सा होना चाहिए। संसदीय लोकतन्त्रा की मजबूती को लेकर आप अम्बेडकर साहेब से सहमत थे कि जब तक आर्थिक एवं सामाजिक बराबरी के मसले हल नहीं होंगे लोकतन्त्रा सिर्फ एक सीमित ‘प्रभु वर्ग’ का तन्त्र बनकर रह जाएगा। शायद इसी तकाजे से लम्बी बहस के बाद 1954 के दिसम्बर महीने में भारतीय संसद ने भी ‘समाज के समाजवादी ढाँचे’ पर मुहर लगा दी थी। और देखिये इससे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण क्या बात होती कि आपकी ही पार्टी ने सन 1991 में आपके समाजवादी दर्शन का दानवीकरण शुरू कर दिया। अर्थव्यवस्था में नवउदारवाद का ‘युगान्तकारी प्रादुर्भाव’ हुआ
और लोग हमें बताने लगे कि आपकी गरीब परस्त नीतियों के कारण हिन्दुस्तान पूँजी की चमक से वंचित रह गया। वे आपके ही लोग थे जिन्होंने एक ‘व्यापक सहमति’ के आधार पर आपके लोकतान्त्रिाक समाजवाद को
अभियुक्त बनाना शुरू कर दिया और रही सही कसर हमारे नए प्रधानमन्त्राी ने पूरी कर दी
मैं भी उन लोगों में शुमार हूँ जिनका मानना है कि बीते आठ दस महीने में इस देश की राजनीतिक सामाजिक आबोहवा में कई बुनयादी बदलाव आये हैं। सिर्फ सरकार नहीं बदली बल्कि कई सरोकार बदल गये।
सिपर्फ शब्द नहीं बदले बल्कि उनके मायने बदल गये। गरीबी और सामाजिक सरोकारों की बात करना अचानक से ‘गरीबी का जश्न मनाने वाले कालविरु विकास विरोधी’ की संज्ञा से नवाजे जाने लगे हैं। सत्ता संगठन और
क्रोनि पूँजीवाद का यह अद्भुत गठबन्धन गुस्से और आक्रोश में आपके विचारों की बात करने
वालों को ‘गरीबी का जश्न’ मनाने वाले छद्म क्रन्तिकारी मानते हैं। कुल मिलाकर ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ वाली नयी सरकार ने आप पर अभियोग करते हुए आपके लिए  ‘संगसार’ की सजा तय कर दी है। हर हाथ
में पत्थर है और निशाने पर आप हैं जवाहरलालजी। आपके बचाव की कोशिश  में कुछ पत्थर हम जैसे आपके मुरीदों के हिस्से भी आ जाते हैं। सहानुभूति के लिए नहीं कह रहा हूँ। यूँ ही इस पफसाने में जिक्र हो आया।
प्रिय जवाहरलालजी। अपने बचपन की एक बात बताना चाहता हूँ। बिहार के एक छोटे से शहर में जब बजट का दिन आता था तो हम बजट में आम आदमी, मध्यम वर्ग, निम्न माध्यम वर्ग और वंचित समूह अपने सरोकार के प्रति सरकारों की प्रतिबता और प्राथमिकता ढूंढ़ते थे। केरोसिन, माचिस, मोमबत्ती, चीनी, अगरबत्ती, खाद्य पदार्थों, कपडे़ इत्यादि। सरकारें और आम बजट इन चीजों की बढ़ती-कम होती कीमतों के मानकों पर तौली जाती थी। सन नब्बे के पश्चात अचानक से हमारा बजट, हमारा नहीं रह गया। आम बजट
बिलकुल खास होता चला गया। थोड़ी नाराजगी आप से भी है कि न जाने कैसे लोगों को
छोड़ गये आप काँग्रेस में कि सन 1991 के बाद से साल दर साल, आने वाली सभी सरकारों के ;काँग्रेस सहितद्ध बजट से आम लोगों के चेहरे और उनके सरोकार लुप्त होते गये। अब तो आलम यह है कि बजट के दिन हर मीडिया संस्थान कोर्पोरेट के चेहरे पर की मुस्कराहट की लम्बाई और चैड़ाई नापता रहता है। क्या-क्या लिखूँ और क्या याद करूँ। यह अपफसाना खत्म ही नहीं होना चाहता है...। और कासिद को कैसे बताऊँ कि मामला...।
बात निकलेगी तो पिफर दूर तलक जाएगी के अन्दाज का है। आपके मुल्क की आबोहवा अगर और खराब होगी तो पिफर लिखूँगा..। अन्यथा इसे अपने एक मुरीद का पहला और आखिरी खत मानियेगा।
और हाँ...। आराम में खलल के लिए मुआपफी के साथ!

                                                      मनोज कुमार झा
                         लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में सामाजिक            
                                                 कार्य के प्राध्यापक हैं।
                                                    +919899694883
                                           jhamanoj100@gmail.com


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